गठिया बाय या रूमटॉइड आर्थ्राइटिस ख़ासतौर पर हाथ व पैर के छोटे जोड़ों में सूज़न व दर्द करता है। रूमटॉइड आर्थ्राइटिस एक ऑटो इम्यून बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम (प्रतिरोधक शमता) शरीर के अंगों के प्रति असंतुलित एवं आक्रामक हो जाता है जिससे इम्यून सिस्टम की कौशिकाएँ - शरीर के जोड़, मांसपेशियों, हड्डी एवं महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों को नुक़सान पहुँचाने लगती हैं !
गठिया के मरीज़ को जब भी गठिया के बारे में पता लगता है तो वह डॉक्टर से एक सवाल ज़रूर पूछता है कि मुझे किस चीज़ का परहेज़ करना है।
सबसे महत्वपूर्ण परहेज़ जो गठिया के मरीज़ को करना चाहिए वह है ‘धूम्रपान’ इसके कई कारण हैं जैसा कि
१, धूम्रपान से गठिया होने की संभावना बढ़ना:
गठिया के होने के अनेक कारण हैं और धूम्रपान इसमें से प्रमुख कारण है। गठिया में इम्यून कोशिकाएं एक प्रकार का प्रोटीन पैदा करती है जिसे हम Anti CCP एंटीबॉडी कहते हैं जो की एक प्रमुख कारण है गठिया के होने में। यह ऑटो एंटीबॉडी 80 प्रतिशत गठिया के मरीज़ों में पाई जाती है और बीमारी को जल्दी पहचानने में भी सहायता करती है। गठिया होने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि वह व्यक्ति कितने सालों से धूम्रपान कर रहा है और रोज़ कितनी सिगरेट या बीड़ी पी रहा है। धूम्रपान करने से गठिया होने की संभावना पुरुषों में दोगुनी और महिलाओं में डेढ़ गुना बड़ जाती है।
२, धूम्रपान से गठिया के मरीज़ों में तक़लीफ बढ़ जाती है
धूम्रपान करने से गठिया और भी गंभीर हो जाती है। गंभीर लक्षणों में - जोड़ों में टेढ़ापन व विकृति, जोड़ों के अलावा बाक़ी आंतरिक वह महत्वपूर्ण अंगों के दुष्प्रभाव पड़ना आदि है।
३, धूम्रपान करने से गठिया बाय की दवाइयों का भी असर कम होता है
अत्यधिक धूम्रपान करने वाले मरीज़ों में डिजीज़ मॉडिफाइड एंटी रोमांटिक दवाइयों का असर कम हो जाता है और इलाज कठिन हो जाता है। गठिया के मरीज़ों में बीमारी के वज़ह से हृदयघात व लकवा आने की संभावना भी बढ़ जाती है और इसमें अगर मरीज़ धूम्रपान करता है तो इसकी सम्भावनाएँ ज़्यादा हो जाती हैं।
अतः गठिया के मरीज़ों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए इससे वह स्वस्थ रह सकते हैं। सिगरेट के धुएं में चार सौ से ज़्यादा हानिकारक केमिकल्स का मिश्रण होता है जो कि शरीर में नुक़सान करते हैं और महत्वपूर्ण अंगों को नुक़सान पहुँचाते हैं।
धूम्रपान न करने के फ़ायदे अनेक हैं जिनमें गठिया के होने की संभावना कम होना, गठिया के इलाज में दवाइयों का असर बढ़ना, और गठिया के मरीज़ों में जोड़ों में टेढ़ापन आने से बचना है।
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